Hajj 2023: हज पर जाने की चाह रखने वाले मुसलमानों (Muslims) के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, हज के लिए आवेदन की लास्ट डेट 10 मार्च 2023 है. बीते दिनों 6 फरवरी को इस संबंध में केंद्र सरकार (Central Govt.) के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने हज पालिसी 2023 (Hajj Policy 2023) का एलान किया, जिसके तहत इस बार हज का आवेदन फॉर्म मुफ्त दिया जा रहा है. इससे पहले इसके लिए 300 रूपये शुल्क के रुप में देने होते थे. जबकि इस बार हज पर जाने वाले जायरीन को खर्चों में 50 हजार रुपये तक छूट के अलावा कई और सहूलियतों का फाएदा मिलेगा.
इस बार सऊदी सरकार ने भारत से हज के लिए 1 लाख 75 हजार का कोटा निर्धारित किया है, जिसमें 80 फीसद लोगों को हज कमेटी की तरफ से और 20 फीसदी लोग प्राइवेट टूर आपरेटर के जरिये हज पर जा सकेंगे. हज पर जाने वाले लोगों की सहूलियत के लिए सरकार ने 6 नए प्वाइंट के साथ कुल 25 प्वाइंट बनाए हैं जहां से जायरीन हज के लिए रवाना हो सकते हैं. इस बार हज 25 या 26 जून से शुरु होकर 1 जुलाई तक हो सकती है. ऐसे में हज के ख्वाहिशमंद लोगों के साथ आम लोगों के मन में भी इसको को लेकर कई तरह के सवाल होंगे, आईये उसी पर चर्चा करते हैं.
हज क्या है?
इस्लाम के पांच महत्वपूर्ण बुनियादी स्तंभ हैं उन्हीं में से एक है हज. इस्लाम के अन्य चार पवित्र महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, 1- तौहीद (एक खुदा की गवाही देना और पैगंबर मोहम्मद साहब और उसके रसूल पर यकीन रखना). 2- नमाज कायम करना यानि दिन में 5 बार खुदा को याद करना. 3- ज़कात अदा करना अर्थात अपनी सेविंग से साल के पूरा होने पर ढाई फीसद धन गरीबों, मिस्कीनों बेवाओं, यतीम बच्चों, मुसाफिरों, कर्ज़दारों, परेशान हाल लोगों की मदद करना. 4- रमजान के रोजे रखना यदि वह बीमार नहीं है और 5- हज इस्लाम के महत्वपूर्ण स्तंभों में सबसे अंत में आता है.
हज अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है ”यात्रा का इरादा करना.” हज एक सालान तीर्थ यात्रा है, जो सभी मुसलमानों पर पूरे जीवनकाल में कुछ शर्तों के साथ एक बार फर्ज है. अब सवाल ये है कि हज पर जाने के लिए क्या शर्तें हैं या किन पर फर्ज है?
हज किन पर फर्ज और क्या है मकसद?
इस्लाम में हज ऐसे लोगों पर फर्ज किया गया है जो इस सफर का खर्च और दौराने हज का खर्च उठा सकें, वह किसी का कर्जदार न हों या उनके यहां कोई ऐसी मजबूरी जिसकी वजह से उस काम का करना जरूरी है. इसके अलावा दूसरी शर्तें हैं कि वह मुस्लिम हो, अक्लमंद हो, बालिग हो, आजाद हो यानि किसी का गुलाम ना हो ऐसे लोगों पर पूर जीवनकाल में एक बार हज वाजिब (ऐसा काम जिसको करना जरुरी हो) है. औरतों के लिए उसके साथ मेहरम (बाप, भाई या इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार जिनसे निकाह नहीं हो सकता) या शौहर का होना हज पर जाने के लिए लाजमी शर्त है.
हज का मकसद बुरे कर्मों की खुदा से माफी मांगना और आगे की जिंदगी में बुरे कामों से दूर रहना, साथ ही खुदा से प्राप्त नेअमतों का शुक्रिया अदा करना और पूरी मानवता के लिए सुख, समृद्धि, शांति की प्रार्थना करना. इस दौरान पूरी दुनिया से मुसलमान हज के लिए क्षेत्र, रंग, नस्ल ज़ात और सभी तरह के भेदों से ऊपर उठकर एक जगह इकट्ठे होकर खुदा की इबादत करते हैं और अपने गुनाहों की मुआफी के लिए प्रार्थना करते हैं. हज के लिए पूरी दुनिय से हर साल 25 से 30 मिलियन लोग सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का आते हैं. हज पूरी दुनिया में सबसे बड़े सालाना धार्मिक आयोजनों में से एक है, दौरान हज किसी भी अनहोनी से बचने के लिए वहां की सरकार कड़ी सुरक्षा और बहुत ही सुनियोजित ढ़ंग से जायरीनों को रस्मों की अदायगी करवाती है. जहां जायरीन पूरी श्रद्धा के साथ पूरे अनुशासन में खुदा की इबादत करते हैं.
हज की शुरुआत कैसे हुई?
हज की रस्में साल में एक बार अदा की जाती हैं, लूनर कैलेंडर या अरबी कैलंडर के मुताबिक साल के आखरी महीने जिल हिज्जा में पवित्र हज के रस्मों को अदा किया जाता है. इस्लामिक विद्वानों के मुताबिक, जिल हिज्जा का शाब्दिक अर्थ ही हज का महीना होता है. सबसे पहली बार हज पैंगबर मोहम्मद साहब ने सन् 628 ई. (अरबी कैलेंडर के मुताबिक 8वीं हिजरी में) 1400 मुस्लमानों के साथ ये पवित्र यात्रा की.
इस्लाम में मान्यता है कि हज की शुरूआत पैंगबर इब्राहिम अलैहिस्सलाम के जमाने से हुई, पैंगबर इब्राहिम अलैहिस्सलाम के लिए अंग्रेजी में अब्राहम शब्द का इस्तेमाल करते हैं. पैंगबर इब्राहिम अलैहिस्सलाम को खुदा के द्वारा नबी बनाए जाने से पहले मक्का के लोग गलत कामों को करने में लगे थे. खुदा ने पैंगबर इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उनको अपनी पत्नी हजरत हाजरा और दुधमुहें बच्चे इस्माइल को पुराने मक्का के वीरान रेगिस्तान में अकेला छोड़ने का आदेश दिया. इस दौरान रेगिस्तान में प्यास से निढ़ाल बच्चे इस्माइल को पानी पिलाने के लिए, पानी की तलाश में हजरत हाजरा ने दो पहाड़ियों सफा और मरवा के बीच सात चक्कर लगाए और जब वापस आकर देखा तो बच्चे के एड़ियों के रगड़ने से उस जगह पानी का चश्मा बहने लगा. पानी को फैलने से रोकने के लिए हजरत हाजरा ने जमजम शब्द का इस्तेमाल किया, जिससे पानी वहीं ठहर गया. हालिया दिनों में ये कुआं आबे जमजम नाम से जाना जाता है, जो मक्का के मस्जिदे हराम में मौजूद है.
हज के रस्मों की अदायगी सिर्फ जिल हिज्जा के महीने में ही सकती है, अन्य दिनों में मक्का और मदीना की जाने वाली जियारत को “उमरा” कहते हैं. हज की अदायगी साल के एक निश्चित तारीखों को ही होती है जबकि उमरा पूरे साल में कभी भी किया जा सकता है. उमरा करने का सवाब (पुण्य) हज के बराबर माना जाता है.
कितने दिनों का होता है हज का सफर?
आमतौर पर हज पूरा होने के लिए दिनों की संख्या निर्धारित नहीं है लेकिन 5 से 6 दिनों में हज के रस्मों के अदायगी के बाद हज पूरा हो जाता है. हज पर जाने वाले जायरीनओं के लिए एहराम बांधने से लेकर अरबी महीनों के 8, 9, 10, 11, 12 और 13 जिल हिज्जा को ईद उल अदहा (बकरा ईद) की नमाज के होते ही कुर्बानी करने बाद मीना में शैतान को पहले या बाद में कंकरिया मारने के बाद हज पूरा हो जाता है.
हज में अदा की जाती हैं ये रस्में (Rites)
मुख्यरुप से माना जाता है कि हज की नियत कर घर से निकलते ही हज शुरु हो जाता है और उसका सवाब (पुण्य) संबंधित जायरीन को मिलना शुरु हो जाता है, लेकिन मान्यताओं के मुताबिक हज की आधिकारिक पवित्र शहर मक्का में प्रवेश से पहले मीकात (कुछ विशेष जगह) से होती है. यहीं से जायरीन हज की रस्मों को करना शुरु कर देते हैं. इसके लिए वे श्रेणीबद्ध ढ़ग से इन नियमों का पालन करते हैं.
एहराम
मक्का से कुछ दूर पहले मीकात (कुछ विशेष जगह) पर जायरीन हज की नियत कर एहराम बांधते हैं. हालांकि इस प्रक्रिया को कुछ लोग पहले से ही करना शुरु कर देते है. एहराम में पुरुष शरीर को दो चादरों से ढ़क लेते हैं. ये कपड़ा सफेद और बगैर सिला हुआ रहता है, साथ में चप्पल पहनते हैं. एहराम पवित्रता के साथ समानता, एकता, बंधुत्व का प्रतीक है, इस कपड़े में व्यक्ति विशेष के वर्ग, धन- वैभव, क्षेत्रीयता और सांस्कृतिक पहचान मिट जाती है और सभी एकसमान दिखाई देते हैं. जबकि महिलाएं के लिए इस मामले में कुछ छूट है जिसमें वे आम कपड़े पहनती हैं, जहां वे सादे कपड़ों में केवल अपने चेहरे और हाथों को खुला रखती हैं.
एहराम बांधने से पहले जायरीन को मूंछे काटना और दाढ़ी को छोडकर शरीर के दूसरे हिस्सों के गैर जरुरी बालों को साफ करना, गुस्ल (नहाना), खुश्बू लगाना के साथ नाखूनों को काट लेते हैं. एहराम बांधने के बाद जायरीन गुस्ल के अलावा नाखून और बाल नहीं काट सकते हैं. इस दौरान वे यौन गतिविधि और बहस या लड़ाई से दूरी बनाकर रखते हैं. एहराम को हज की सभी रस्मों को पूरा होने तक पहनना जरुरी होता है.
हज से पहले उमरा
एहराम बांधने के बाद अक्सर जायरीन मक्का पहुंचने से पहले उमरा करते हैं. वैसे तो ये किसी भी महीने में किया जा सकता है लेकिन, धार्मिक मान्याताओं के मुताबिक ज्यादा सवाब की नियत से लोग उमरा करते है. हज करने से पहले उमरा जरुरी नहीं है लेकिन अगर कोई उमरा करता है तो हर्ज भी नहीं है.
8 जिल हिज्जा से हज की शुरुआत
हज की शुरुआत अरबी कैलेंडर के तारीख 8 जिल हिज्जा से शुरु होती है. हज करने वाले जायरीन 8 जिल हिज्जा को मीना शहर जाते हैं, वे पूरी रात वहीं गुजारते हैं और 9 जिल हिज्जा की सुबह को एक दूसरी जगर अराफात के मैदान में पहुंचते हैं. अराफात के मैदान में ही पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने जीवन के पहले और आखिरी हज का खुत्बा (सामूहिक प्रवचन) दिया था. इस दौरान जायरीन यहां खुदा की ईबादत करते हैं और अपने गुनाहों की मुआफी मांगते हैं.
इसी दिन शाम को जायरीन अराफात से मक्का के एक और पवित्र शहर मुजदलफा के लिए रवाना होते हैं वे 9 की पूरी रात वहीं रुकते हैं और 10 जिल हिज्जा की सुबह दोबारा पवित्र शहर मीना के लिए निकलते हैं.
10 जिल हिज्जा यानि ईद उल अदहा के दिन जायरीन करते हैं ये रस्में
मीना से 10 जिल हिज्जा को जायरीन मक्का पहुंचते हैं. ये दिन हज पर जाने वाले लोगों के लिए सबसे मसरुफ दिनों में से एक होता है, इसी दिन पूरी दुनिया के मुसलमान ईद उल अदहा (बकरा ईद) मनाते हैं. जायरीन इस दिन 4 रस्मों को अदा करते हैं-
जमरात (प्रतीकात्माक शैतानी पिलर)
जायरीन सुबह उठकर ज्वाल (दोपहर से पहले) से बड़े जमरात (प्रतीकात्माक शैतानी पिलर) को सात बार कंकरियां मारते हैं. इसके बाद जायरीन मीना में जानवर की कुर्बानी देते हैं. सर के बाल मुंडवाते हैं और बढ़े हुए नाखूनों को काटते हैं, जबकि महिला जायरीन भी अपने बालों को थोड़ा सा कटवाती हैं.
11 और 12 जिल हिज्जा को भी ज्वाल के बाद (दोपहर के बाद) तीनों जमारात को कंकरियां मारते हैं या फिर 13 जिल हिज्जा को भी कंकरिया मारते है. यह हज का आखरी दिन होता है.
बैतुल्लाह (पवित्र काबा) का तवाफ
10 जिल हिज्जा के दिन ही जायरीन मक्का में मस्जिदे हराम में बैतुल्लाह (पवित्र काबा) का 7 बार घड़ी की वीपरीत दिशा में तवाफ (चक्कर लगाना) करते हैं. इस दौरान जायरीन हजरे असवद (एक विशेष पवित्र काला पत्थर) का बोसा (चूमना या छूना) लेते हैं, जो लोग इस रस्म को भीड़ की वजह से नहीं कर पाते वह दूर ही से इशारा करके गुजर जाते हैं.
सफा और मरवा
हज के दौरान जायरीन सफा और मरवा पहाड़ी पर 7 बार सई (दौड़ना) करते हैं. ये पैगंबर इब्राहिम अलैहिस्सलाम की पत्नी हजरत हाजरा के पानी की तलाश में दोनों पहाड़ियों के बीच 7 बार चक्कर लगाया था, यह क्रिया खुदा के प्रति उनकी श्रद्धा, त्याग और बलिदान को प्रदर्शित करती है.
हज करने वाले नहीं कर सकते हैं ये काम
जीवनकाल में एक बार या ज्यादा हज करने वालों को हाजी कहते हैं. इस्लाम की मान्यताओं के मुताबिक हज करने वालों के सारे गुनाह माफ हो जाते हैं, ये एक तरह से एक प्रण भी होता है कि आने वाले जीवन में पूरी सादगी ईमानदारी के साथ जिंदगी गुजारने, दूसरों को तकलीफ न पहुंचा कर पूरी श्रद्धा के साथ खुदा की इबादत में तल्लीन रहने की. इसीलिए हज को इस्लाम के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक माना जाता है.
[नोट: लेखक के निजी विचार हैं. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]