नई दिल्ली: इज़राइल दफाई, तहक़ीक़, ख़ुफ़िया जींस के हवाले से दुनिया का पहला और मज़बूत मुल्क समझा जाता है. लेकिन इस वक़्त इज़राइल अदम तहफ़ूज़ के ख़तरे में जूझ रहा है. दर हक़ीक़त इज़राइल के अवाम हुकूमत के खिलाफ सड़कों पे निकल आये हैं और इस एहतेजाज में अवाम के साथ रिज़र्व फौज के लोग भी उतर आये हैं. वे काम पे नहीं जा रहे हैं. इससे इज़राइल की सिक्योरिटी को खतरा पैदा हो गया है. ये सब कुछ न्यायपालिका और जम्हूरियत की आज़ादी के तहफूज़ के लिए हो रहा है.
इज़राइल वज़ीर आज़म बेंजामिन नितन्याहु पे करप्शन के कई इल्ज़मात लगे हुए हैं. वो इक़्तेदार में आ चुके हैं, लेकिन इनकी हुकूमत अदालती असलाहात के क़वानीन में सुधर कराने की तैयारी कर रही थी जिस से अदलिया में तब्दीलियां आएंगी. इसकी मुख़ालफ़त करने वालो को डर है कि जैसे ही इन पर अमल होगा, अदलिया के इख़्तियारात खतम हो जाएंगे.
इज़राइल की पार्लियामेंट को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को सादा अक्सीरियत से रद्द करने का इख़्तियार हासिल होगा. मौजूदा हुकूमत को बग़ैर किसी ख़ौफ़ के क़वानीन पास करने का इख़्तियार मिल सकता है और सबसे बड़ी बात ये है कि इस क़ानून को वज़ीर आज़म नितन्याहु के खिलाफ जारी मुकदमात को ख़तम करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. बेंजामिन नितन्याहु गुज़िश्ता साल नवंबर में बमुश्किल इक़्तेदार में वापिस आये थे. इससे क़ब्ल जून 2021 में इन्हे बदउनवानी के मुकदमात की वजह से ओहदा छोड़ना पड़ा था.
जैसे ही नेतन्याहू हुकूमत ने अदालती इस्लाहात का क़ानून में सुधार कराने की तैयारियां तेज़ की, इज़राइल की पब्लिक सड़कों पर उतर आयी. बेंजामिन नितन्याहु के लिए बी बी घर जाओ के नारे लगने लगे. बी बी नितन्याहु का मक़बूल नाम है. नितन्याहु के सियासी हरीफ़ इन मुज़हिरों के क़यादत कर रहे हैं, लेकिन इसमें नितन्याहु के बहुत से हामी, मज़दूर तंज़ीमें और रिज़र्व फौज के लोग भी इनके साथ आयें हैं.
मुख़ालफ़ीन का कहना है कि हुकूमत ने अदलिया से मुताल्लिक़ क़ानून में जो तब्दीलियां करने की कोशिश की है इससे मुल्की जम्हूरियत को शदीद ख़तरा पैदा हो सकता है. हुकूमत अदालती निज़ाम को कमज़ोर करना चाहती है. जबकि मुल्क में इसकी तारीख़ हुकूमतों को लगाम डालने की रही है.
इज़राइल के कई बड़े शहरों में मुज़हिरों में इज़ाफ़ा हुआ, जिसके नतीजे में बेंजामिन नितन्याहु ने कहा के वो अदालती इस्लाहात के मुतनाज़ा क़वानीन को आरज़ी तौर पर रोक लगा रहे हैं. इन्होने कहा के जब मज़ाकरात के ज़रिये ख़ाना जंगी से बचने का ऑप्शन होता है तो मैं मज़ाकरात के लिए वक़्त निकलता हूँ. ये एक क़ौमी ज़िम्मेदारी है. इस एलान के बाद अब मुख़ालफ़ीन ने सड़कों से लौटना शरू कर दिया है और इसे जम्हूरियत की बड़ी फतह के तौर पर देखा जा रहा है. कोई भी मुल्क हक़ीक़ी माइनो में इसी वक़्त जम्हूरी रह सकता है जब वहां ताक़त रोकने का निज़ाम हो. ये निज़ाम आज़ाद अदलिया, मज़बूत आप्पोजीशन और जम्हूरी हक़ूक़ से ही बन सकता है. इनमे से कोई भी पार्टी कमज़ोर हो तो जम्हूरियत को नुकसान पहुँचने लगता है. इक़्तेदार के ख़ुदमुख़्तार बनने का ख़तरा बढ़ जाता है.
इज़राइल में नितिन्याहु ने इसी तरह अमरियत की रह हमवार करने की तैयारी की थी लेकिन सिर्फ अवाम, अपपोज़िशन और हुकूमत के साथ खड़े कुछ लोगों ने रास्ता बनने से रोक दिया. क्योंकि इस के बाद वो मुस्तक़बिल के ख़तरात को भांप रहे थे. जम्हूरियत में एक बार मनमानी रवैये की इजाज़त दे दी जाये तो फिर अमरियत को रोकना मुश्किल हो जाता है.
जर्मनी जैसे मुल्क में अमरियत के नताएज दुनिया देख चुकी है. इस वक़्त ताक़त का ये जूनून शुमाली कोरिया में लोगों को भारी पड़ रहा है, जहां हुक्मरान किमजोंग ने 2 लाख से ज़ायेद आबादी वाले शहर हेसन में सिर्फ इस लिए सख़्त लॉकडाउन नाफ़िज़ कर दिया, ताकि असॉल्ट राइफल ki 653 गोलियां जो हाल ही में फ़ौजिओं ने खोयी हैं उनकी तलाश की जा सके. अगर किसी मुल्क का अमीर चन्द सौ गोलियां की ख़ातिर 2 लाख लोगों को बंधक बनाने का ये फैसला कर सकता है? तो अमरियत की तरफ बढ़ने वाले बाक़ी मुमालिक कब तक ऐसे पागल फैसले से बच सकेंगे, यही सोच ख़ौफ़ज़दा करती है.
दुनिया के कई मुमालिक में हुकुमरानों ने अपनी मनमानी अवाम पर मुसल्लत कर राखी हैं. ऐसे बहुत से क़वानीन मज़हब या नसल के ग़रूर, क़दमत पसंद ख़यालात या क़ौम परस्ती के नाम पर बनाये गए हैं, जो अवाम के हक़ूक़ को पामाल करता है या अदालतों के इख़्तियारात को कम करता है. ये इन्तेहाई फैसले दुनिया को तबाह कर सकते थे लेकिन दुनिया सिर्फ इसलिए बची है के क्योंकि लोगों ने बार बार इन जल्दबाज़ फैसलों और ज़ालिम के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत दिखाते रहे हैं.
गुज़िश्ता चन्द सालों में ईरान ,ब्राज़ील, फ्रांस से लेकर अब इज़राइल तक दुनिया ने अवाम की ताक़त को देखा है. इक़्तेदार की नज़रों में मामूली हैसियत रखने वाले ये आम लोग जमूहरियत बचाने का इतिहास लिख रहे हैं. इन लोगों को कभी मुल्क का दुश्मन कहा जाता है, कभी ग़द्दार कहा जाता है, इन्हे कुचलने के क़ानून का ज़ोर दिखया जाता है. लेकिन इसके बावजूद जम्हूरियत को बचाने की उम्मीद में एहतेजाज की एक या दूसरी किरण अपनी चमक दिखला ही जाती है. इस वक़्त इज़राइल ने ऐसी में चमकती किरण दुनिया ने देखी है. अब वक़्त आ गया है के इक़्तेदार को मुस्तक़िल समझने वाले लेडेरों को ये भी देखना चाहिए और हालत ख़राब होने से पहले होशियार रहना चाहिए.
[नोट: उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एमसीएफ न्यूज़ इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]