लोकतंत्र के आधार पर बीबीसी पर कार्रवाई की गई

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नई दिल्ली: जुमेरात 16 फ़रवरी को ये लाइन लिखने तक बीबीसी के दिल्ली और मुंबई के दफ्तरों में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के सर्वे का काम जारी है. बीबीसी के दफ्तर पर सर्वे का काम 14 फ़रवरी से शुरू हुआ और तक़रीबन 48 घंटे गुज़रने के बावजूद शायद अफसरान को ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिसकी बुनियाद पर बीबीसी पर कोई भी संगीन इल्ज़ाम लगाया जा सकता है.

सर्वे में न सिर्फ बीबीसी के दफ्तर की तलाशी ली गयी बल्कि बीबीसी के तमाम पत्रकारों के फ़ोन कई घंटों तक ज़ब्त कर लिए गए. हुक्कामों का कहना है कि ये सर्वे इंटरनेशनल टैक्सेशन और बीबीसी के ज़िली इदारों के ट्रांसफर प्राइसिंग से मुतल्लिक़ मसाइल छान बीन के लिए किया जा रहा है.

इनकम टैक्स अधिकारी मालियाती लेनदेन, कंपनी के ढांचे और न्यूज़ कंपनी के बारे में दीगर तफ़सीलात और इलेक्ट्रॉनिक एक़ुइप्मेंत से डेटा कॉपी करने के बारे में जवाब तलब कर रहे हैं. वाज़े रहे कि बीबीसी कोई सनअती इदारा नहीं है, न ही ये कोई ग़ैर सरकारी खैराती इदारा है जो इंटरनेशनल माली इमदाद हासिल करता है. बीबीसी एक न्यूज़ एजेंसी है, जहां कई ज़राये से ख़बरें जमा की जाती हैं. इनमें बहुत से ज़राये ख़ुफ़िया हैं, लेकिन इस सर्वे से इन ज़रिए को बेनक़ाब करने की उम्मीद है, जो आज़ाद सहाफत के लिए खतरा है.

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट अपनी कारवाही के लिए सर्वे, इन्क्वायरी, तफ्तीश जैसे तमाम तकनिकी अल्फ़ाज़ इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इनकी अचानक कार्यवाही को एक बावक़ार, इंटरनेशनल मीडिया इदारे पर छापे के तौर पर देखा जा रहा हैं, और न सिर्फ हिंदुस्तान में बल्कि पूरी दुनिया में इसका चर्चा हो रहा है.

मुल्क में कांग्रेस समेत कई विपक्षी जमातों ने बीबीसी के दफ्तर में इन्कमटैक्स अफसरान पर सवाल उठाया, ये सब नरेंद्र मोदी पर डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: दी मोदी क्वेश्चन के चलने के बाद ही क्यों हुआ? हुकूमत इसे बेगुनाही के साथ इत्तेफ़ाक़ कहना चाहे तो विपक्षी दल की जानिब से इसे बेबुनियाद इल्ज़ाम ही क्यों न कहा जाये? यहां तक की अगर वो ये सवाल उठाते हैं कि बीबीसी पर कार्यवाही से इन्हे तकलीफ क्यों हो रही हैं और अगर वो चाहें तो अपनी ख्वाहिशें का हवाला देते हुए कुछ न कहें. आखिरकार इस से क़ब्ल भी हुकूमत ने बहुत से संजीदा सवालात का जवाब देना ज़रूरी नहीं समझा, जम्हूरियत (लोकतंत्र) में हुकूमत एक नए अंदाज़ में ख़ामोशी की ताक़त दिखा रही है.

हुकूमत कोई भी रास्ता इख़्तियार करे लेकिन दुनिया के वो मुमालिक जहां जम्हूरियत अभी सांस ले रही हैं और जहां मीडिया आज़ाद महसूस कर सकता है. इन मुमालिक के मीडिया फोरमज़ में इस कार्यवाही पर सवालात उठाये जा रहे हैं और तक़रीबन तमाम मीडिया हाउसेस में इन्कमटैक्स डिपार्मेंट के सर्वे को बीबीसी की दस्तावेज़ी फिल्म के तनाज़ा से जोड़ा जा रहा है.

वैसे तो हुकूमत पहले ही दस्तावेज़ी फिल्म की भारत में नुमाइश पर पाबन्दी का हुकुम दे चुकी है. सुप्रीम कोर्ट में बीबीसी पर मुकम्मल पाबन्दी लगाने की दरख़्वास्त भी दी गयी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दरख़्वास्त को मुकम्मल तौर पर ‘ग़लतफ़हम’ क़रार देते हुए ख़ारिज कर दिया था. सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दस्तावेज़ी फिल्म का लिंक ब्लॉक करने के हूकूमति फैसले को चैलेंज करने वाली दरख़्वास्तें अप्रैल में सुनवाई के लिए आने वाली हैं और ये देखना दिलचस्प होगा कि इस पर क्या फैसला होता है.

बीबीसी पर इन्कमटैक्स की कार्यवाही से वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में हिन्दुस्तान की पोजीशन पर क्या फ़र्क़ पड़ेगा ये क़ाबिले ज़िक्र है. वैसे पिछले साल 2022 में जो रैंकिंग आयी थी, हिन्दुस्तान 142 में से आठ पायदान से गिरकर 180 मुमालिक में से 150 पर आ गया. हिन्दुस्तान 2016 के इंडेक्स में 133वें नंबर पर था, तब से इसकी रैंकिंग में मुसलसल कमी आ रही है.

रिपोर्ट्स विदआउट बॉर्डरज़ ये इंडेक्स तैयार करता है और इसमें पांच मुतअलक़ा अशारिओं का इस्तेमाल करते हुए हर मुल्क या इलाक़े के स्कोर का जायज़ा लिया जाता है, इनमें सियासी तनाज़िर, क़ानूनी ढांचा, इक़्तेसादी तनाज़िर, समाजी व सक़ाफति तनाज़िर और सलामती शामिल हैं.

इन पैरामीटर पर बानी गुज़िश्ता साल की रिपोर्ट में दर्जाबन्दी की वजह का कारण “सहाफिओं के खिलाफ तशद्दुद और ‘सियासी तौर पर मुतासुब मीडिया में इज़ाफ़ा होना है.” रिपोर्ट में ये भी बताया गया हैं कि हिन्दुस्तान भी मीडिया वालों के लिए दुनिया के ख़तरनाक तरीन मुमालिक में से एक है. सहाफिओं को हर क़िस्म के जिस्मानी तशद्दुद का सामना करना पड़ता है. कर्रप्ट पुलिस तशद्दुद सियासी करकनो की तरफ से घात लगाना और मुजरिमाना गिरोहों या बदउनवान मुक़ामी अहलकारों की तरफ से मुहलिक इन्तेक़ाम.

अगर इस रिपोर्ट को संजीदगी से लिया जाता तो हालत बेहतर बनाने की कोशिश की जाती. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि अब मुल्क के मीडिया के बाज़ इदारों पर कार्यवाही से मुआमला इंटरनेशनल इदारों तक पहुंच गया है. जब हुकूमत पर सवालात उठाने गए तो जवाबन हामियों को इंदिरा गांधी की तरफ से लगायी गयी इमरजेंसी की याद दिलाई गयी. जबकि इस दौर में जनसंघ के कई लीडरों ने इमरजेंसी में जितना हो सका एहतेजाज किया था.

जो बात तब गलत थी, वो अब सही कैसे हो सकती है. अगरचे मुल्क में आज़ादी सहाफत को क़ानूनी निज़ाम से वाज़ेह तौर पर तहफ्फुज हासिल नहीं हैं, लेकिन इस मज़मून के आर्टिकल 19 (1 )(a )के तहत तहफ्फुज हासिल है, जिसके मुताबिक़ तमाम शहरियों को इज़हार राय की आज़ादी का हक़ हासिल होगा’.

रोमेश थापर बमुक़ाबला रियासत मद्रास 1950 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रेस की आज़ादी तमाम जम्हूरी इदारों की बुनियाद है. आज इसी बुनियाद के कमज़ोर होने का खौफ बरक़रार है.

[नोट: उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एमसीएफ न्यूज़ इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]