नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी से ब्रिटेन में दिए गए अपने बयान पर माफ़ी मांगने का मुतालबा कर रही है. पार्लियामेंट मुसलसल छठे रोज़ भी बंद का शिकार रही. राहुल गांधी ने लोक सभा स्पीकर ओम बिरला को खत लिखा ताकि पार्लियामेंट में अपनी बात रख सकें. लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने क़वायद का हवाला देते हुए इनके मुतालबे को ठुकरा दिया.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक बयान जारी करते हुए राहुल गांधी को मुलक के दुश्मन का टूलकिट का हिस्सा क़रार दिया है. बीजेपी को हुब्बुल वतनी इसे बार बार कांग्रेस और राहुल गांधी को घेरने पर मजबूर कर रही है. लेकिन देश प्रेम किरण पटेल के मुआमले में उरूज पर क्यों नज़र नहीं आ रहा है.
राहुल गांधी पर एक के बाद एक बीजेपी लीडरों ने हमले किये. लेकिन बीजेपी कैंप में किरण पटेल के बारे में ऐसी कोई बेचैनी नज़र नहीं आती. जबकि किरण पटेल किसी आम जगह पर नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर जैसे इन्तेहाई हस्सास इलाक़े में जाकर धोखा देही का अरतक़ाब किया है.
वाज़े रहे कि गुजरात के रहने वाले किरण जगदीश भाई पटेल को जम्मू कश्मीर पुलिस ने 3 मार्च को श्रीनगर के एक फाइव स्टार होटल से गिरफ्तार किया था. ये इलज़ाम है कि पटेल ने पीएमओ में तैनात अफसर ज़ाहिर करके और सरकारी खर्च पर तमाम सहूलियात हासिल करके ज़ेड प्लस सिक्योरिटी हासिल कर ली.
पुलिस के मुताबिक़ किरण पटेल के खिलाफ गुजरात में तीन मुक़दमात दर्ज हैं. इसने संतों के नाम पर धोखा दे कर दूसरों को हज़ारो रूपये का फ्रॉड किया है.
मुल्क ने नटवर लाल और चार्ल्स शोभराज जैसे मारूफ मुजरिमो और ठगों को देखा है. लेकिन पार्टी का आदमी बनकर ठगने का मुआमला तो देश अमृतकाल में ही देख रहा है.
किरण पटेल ने प्रधानमंत्री के दफ्तर के ओहदेदार की हैसियत से तीन-तीन बार जम्मू कश्मीर जैसी रियासतों का दौरा किया, बल्कि इसने फ़ख़्रिया अंदाज़ में सिक्योरिटी अफसरान और फौजी अफसरान के साथ तस्वीरें खिंचवाई. बीजेपी के कई बड़े लीडरों के साथ इनकी तस्वीरें हैं. इन्हों ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बीजेपी लीडर बताया गया है. इनके विज़िटिंग कार्ड पर छपा हुआ दिल्ली का पता रसूख़दार लोगों का इलाक़ा समझा जाता है. ये सब कुछ निचली सतह के अफसरान की आँखों में धूल झोंककर किया गया तो कोई त’अज्जुब की बात नहीं. लेकिन हद ये है कि किरण पटेल ने भी Z+ ज़मरा की सिक्योरिटी हासिल कर ली है.
हुकूमत की जानिब से मुल्क में इन्तेहाई ख़ास अफ़राद के लिए मुख़्तलिफ़ कैटेगरीज़ में सिक्योरिटी का इंतज़ाम किया जाता है. मरकज़ी वज़ीर मुमलिकत बराये दाखला जी किशन रेड्डी ने मार्च 2021 में लोक सभा में इसकी जानकारी दी थी कि महफूज़ अफ़राद की मरकज़ी फेहरिस्त में शामिल अफ़राद को मरकज़ी एजेंसियों की तरफ से दरपेश ख़तरे के बारे में तशख़ीस की बुनियाद पर हिफाज़त किया जाता है और वक़्तन फ़ौक़्तन इसका जायज़ा लिया जाता है.
इस तरह के जाइजे की बुनियाद पर सिक्योरिटी कवर को जारी रखने, वापिस लेने या इसमें तरमीम करने का फैसला किया जाता है. 2021 में, मुल्क में 230 लोगों को ‘Z प्लस ‘,”Z ” और “Y ” जमरों के तहत CRPF और CISF जैसे मरकज़ी फौजी दस्तों के ज़रिये सिक्योरिटी फ़राहम की जा रही है. फिर मरकज़ी फेहरिस्त में ऐसे 40 अफ़राद शामिल थे, जिन्हे ज़ेड प्लस कैटेगिरी की सिक्योरिटी फ़राहम की जा रही थी. दो साल में इसकी तादाद में मामूली सी तबदीली हुआ.
फिर भी ये कहा जा सकता है कि 140 करोड़ लोगों में से सिर्फ 40 लोगों को हुकूमत की तरफ से ज़ेड प्लस सिक्योरिटी फ़राहम की जा रही है और अब इनमे से एक धोखेबाज़ निकला-एसपीजी के बाद ज़ेड प्लस सिक्योरिटी आती है. यानी ये विआईपीज़ के लिए सिक्योरिटी का दूसरा दर्जा है जिसमे 55 सिक्योरिटी कर्मी होते हैं.
हिफाज़त की सी सतह तक एक छोटा सा धोखेबाज़ भी पहुंच सकता है चाहे वो कितना भी चालाक क्यों न हो. किया ये मुमकिन है कि किसी अंदरूनी मदद के बग़ैर, किरण पटेल पीएमओ अफसर बनकर सख़त हिफ़ाज़ती घेरे में दहशत गर्दी के हस्सास इलाक़े में घूम रहे हूं और तफ्तीश एजेंसियों को इस का कोई सुराग़ भी नै मिलता है.
2019 के चुनावों के पहले देश ने पुलवामा में दहशतगर्दी का हौलनाक हमला देखा है. जिसमें भारी धमाकेख़ेज़ मवाद से भरी गाड़ी सिक्योरिटी अहलकारों को ले जा रही बस से जाकर टकरा दी गई. तब भी मरकज़ी हुकूमत से कई सवाल पूछे गए थे कि इतने हस्सास इलाक़े, जहां चप्पे-चप्पे पर सेक्युरिटीगार्ड तैनात रहते हैं, वहां के फौजियों की सिक्योरिटी के साथ इतनी बड़ी गड़बड़ी क्यों की गयी? इतना धमाकाख़ेज़ मवाद कहां से आया और किसी ने लाने में मदद की? लेकिन इन सवालों के जवाब में हुकूमत ने क़ौम परस्ती की ढाल इसके सामने रख दी.
हुकूमत ख़ुद जवाब नहीं दे रही है लेकिन राहुल गांधी ने कैंब्रिज में पुलवामा वाक़ये का हवाला देते हुए दहशतगर्दी का लफ़ज़ इस्तेमाल नहीं किया, तो बीजेपी ने इस पर से सवाल किया, जैसे दहशतगर्दी का लफ़ज़ कहने या न कहने से सूरतेहाल पर कोई संगीन असर पड़ रहा है.
किरण पटेल के वाक़ये में भी अब तक दहशतगर्दी का लफ्ज़ कही इस्तेमाल नहीं हुआ है. लेकिन किया सिर्फ इस से इनके ख़िलाफ़ तहक़ीक़ात की सख़्ती में कोई फ़र्क़ पड़ेगा?
किरण पटेल बार बार जम्मू कश्मीर गया और सिक्योरिटी के नुक़्ता नज़र से हस्सास इलाक़ों में भी घूमता रहा, इसलिए हुकूमत को ये फ़िक्र होनी चाहिए कि इस का मक़सद किया था. किया सिर्फ इसे ठग कहने से काम चलेगा? उसके खेल में दूसरे खिलाडी कौन हैं, इसका पसमंज़र किया है? इसे बीजेपी की सतह पर कहां हिमायत मिली, जिसकी वजह से हुकूमत और इन्तेज़ामिआ में लोग इतनी ज़्यादा ताक़त के का मज़े लेते रहे.
इन्होने वज़ीर आज़म का नाम इस्तेमाल करके और किया किया गलतियां की हैं मोदी हुकूमत को इस तमाम मुआमले की तफ्सीली और ईमानदारी से तहक़ीक़ात करानी चाहिए. हिन्दुस्तान इस वक़्त G-20 की सरबराही कर रहा है और मुख़्तलिफ़ मुमालिक में राब्ते बढ़ाने की कोशिश करने वाले बहुत से धोकेबाज़ इसी तरह के घोटाले की तलाश में हैं. अगर हुकूमत ने अब एहतियात न दिखाई तो मज़ीद परेशानी हो सकती है.
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