विद्यालयों में कानूनी पढ़ाई को विषय के तौर पर शुरू करने का आदेश नहीं दे सकते: दिल्ली उच्च न्यायालय

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नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने विद्यालयों में कानूनी अध्ययन को एक विषय के रूप में शुरू करने के निर्देश संबंधी जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा है कि यह मुद्दा अकादमिक नीति-निर्माण से संबंधित अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में आता है।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि पाठ्यक्रम तैयार करना विशेषज्ञ निकायों के एकमात्र अधिकार क्षेत्र में आता है और अदालतें उनकी जगह लेने में सक्षम नहीं हैं। खंडपीठ ने कहा कि भारत सरकार की नई शिक्षा नीति देश की जरूरत को पूरा कर रही है।

खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मुद्दे पर पाठ्यक्रम तैयार करने वाले सक्षम प्राधिकार केंद्रीय माध्यमिक परीक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को अपना अभ्यावेदन देने के लिए स्वतंत्र हैं।

अदालत ने मंगलवार को जारी अपने आदेश में कहा, ‘‘याचिकाकर्ता का यह कहना कि कानूनी अध्ययन को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए और हर स्कूल में इसकी शिक्षा दी जानी चाहिए, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह मुद्दा विशेषज्ञ निकायों के अधिकार क्षेत्र में आता है।’’

अदालत ने आठ मई को जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि स्कूली बच्चों को कानूनी शिक्षा देने का निर्णय लेना सरकारी अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में आता है क्योंकि यह ‘नीतिगत मामला’ है।

(इनपुट पीटीआई-भाषा)