प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज्ञानवापी परिसर का भारतीय पुरातत्व विभाग से सर्वे कराने के वाराणसी की अदालत के आदेश व सिविल वाद की वैधता को लेकर दाखिल याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई नहीं हो सकी है। कोर्ट अब इस मामले में 14 जुलाई को सुनवाई करेगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमने इंतजामिया मसाजिद वाराणसी की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। इसके पहले केस को कोर्ट के समक्ष पेश किया गया और बहस शुरू की गई। समयाभाव की वजह से बहस को रोका गया।
रॉयल बुलेटिन की खबर के अनुसार मामले में कोर्ट ने 28 नवम्बर 2022 को ही सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित कर लिया था। लेकिन कुछ बिंदुओं पर पक्षकारों के अधिवक्ता से स्पष्टीकरण करने के लिए फिर से सुनवाई का आदेश दिया था। कोर्ट ने 24 जुलाई को सुनवाई की थी लेकिन उस दिन बहस के लिए 26 मई की तिथि तय कर दी थी।
याचियों की तरफ से बहस की गई थी कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की धारा चार के तहत सिविल वाद पोषणीय नहीं है। स्थापित कानून हैं कि कोई आदेश पारित हुआ है और अन्य विधिक उपचार उपलब्ध नहीं है तो अनुच्छेद 227 के अंतर्गत याचिका में चुनौती दी जा सकती है।
विपक्षी मंदिर पक्ष का कहना था कि भगवान विश्वेश्वर स्वयं भू भगवान है। वह प्रकृति प्रदत्त है। मानव द्वारा निर्मित नहीं है। उन्होंने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के एम सिद्दीकी बनाम महंत सुरेश दास व अन्य केस के फैसले का हवाला दिया था। उन्होंने कहा कि मूर्ति स्वयं भू प्राकृतिक है। इसलिए प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा चार इस मामले में लागू नहीं होगी।
कहना था कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश सात के नियम 11 की अर्जी वाद के तथ्यों पर ही तय होगी। सिविल वाद में लिखा है कि स्वयं भू विश्वेश्वर नाथ मंदिर सतयुग से है। 15 अगस्त 1947 से पहले और बाद में लगातार निर्बाध रुप से पूजा की जा रही है।
याची का यह कहना कि कोई स्वयं भू भगवान सतयुग में नहीं था। इसका निर्धारण साक्ष्य से ही हो सकता है। यह भी तर्क था कि वाराणसी अदालत के आदेश के खिलाफ याची की पुनरीक्षण अर्जी खारिज हो चुकी है। कोर्ट ने आपत्ति को पोषणीय नहीं माना।