भारत पर अमेरिकी बैंकिंग संकट का प्रभाव

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Photo: Pi.Casino/Twitter

नई दिल्ली: इक़्तेसादी दुनिया में एक बार फिर 2008 की आलिमि कासाद बाज़ारी का चर्चा हो रहा है۔ जब लेहमैन ब्रदर्स बैंक 15 सितम्बर 2008 को डूबा था तो इसने पूरी दुनिया में बड़ी मआशी तबाही मचा दी थी۔ कई और बैंक उस वजह से डूब गए थे۔ बैंकों पर इस संकट का असर कारोबारी दुनिया पर पड़ा और इसने मज़ीद मुलाज़मतें छीन लीं, एक ही झटके में बेरोज़गारों की तादाद बढ़ गईं.

दुनिया को ट्रैक पर वापिस आने में वक़्त लगा. लेकिन इसके बाद कोरोना ने आर्थिक संकट पैदा कर दिया, लोग अभी इस सदमें से संभल रहे हैं कि बैंकिंग सेक्टर के हवाले से पूरी दुनिया में एक बार फिर बेचैनी महसूस की गयी. सरमायाकार कई दिनों से सूद की बढ़ती हुई दरों को महसूस कर रहे थे और इस चुभन के दरमियान ये ख़बर आयी कि अमेरिका में सिल्वरगेट कैपिटल कॉरपोरेशन बैंक 9 मार्च को डूब गया और  सिलिकॉन वैली बैंक यानी एसवीबी 10 मार्च को डूब गया. महेरीन एसवीबी (सिलिकॉन वैली बैंक) के डूबने को 2008 के बाद अमेरिका का दूसरा बड़ा बैंकिंग संकट बता रहे हैं.

एसवीबी (सिलिकॉन वैली बैंक) जो कि अमेरिका में 16वे नंबर पर है, दो महीने पहले तक 209  बिलियन डॉलर के असासे रखता था. बैंक के पास 179  बिलियन डॉलर ज़ख़ायर थे, लेकिन बुध के रोज़ जब बैंक ने 2.5 बिलियन डॉलर इकठ्ठा करने के अपने मंसूबों को आम किया, लोगों को बैंक की माली हालत पर शक हो गया और इन्होने अपनी रक़म निकलना शुरू कर दिया.

लोग जुमेरात से ही बैंक से पैसे निकलने में मसरूफ थे. इसके बाद जुमा को अमेरिकी हुकूमत ने बैंक की कमान संभाली और फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन को बैंक का रिसीवर बना दिया गया. दरअसल एसवीबी (सिलिकॉन वैली बैंक) पर ये मालियाती संकट फेडरल रिजर्व की शरह सूद में इज़ाफ़े की वजह से आया है. 2017 के आख़िर तक, बैंक के पास 44 बिलियन डॉलर डिपॉज़िट था.

साल 2021 के आख़िर तक ये 189 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. बैंक जिस शरह पर क़र्ज देते हैं और जिस शरह पर वो लोगों से पैसे लेते हैं इसमें फ़र्क़ बैंकों की कमाई होती है. सिलिकॉन वैली बैंक का डिपॉजिट इसके ज़रिये दिये गए क़र्ज़  की रक़म से कहीं ज़यादा हैं. इसलिए सिलिकॉन वैली बैंकने सूद से रक़म कमाने के लिए बॉन्डज़ में पैसा लगाना शुरू किया. सिलिकॉन वैली बैंकने सार्फीन (ग्राहकों) के डिपॉज़िट से अरबों डॉलर मालियात के बॉन्डज़ ख़रीदे. ये सरमायाकारी आम तौर पर महफूज़ होती हैं, लेकिन जैसे जैसे शरह सूद में इज़ाफ़ा होता है, इन सरमायाकारी की क़दर में कमी होती हैं.

दर हक़ीक़त, दुनिया के बहुत से मरकज़ी बैंकों की तरह, अमेरिका में फेडरल रिजर्व ने भी महंगाई की बुलंद सतह को देखते हुए शरह सूद में जारहाना इज़ाफ़ा करना शुरू कर दिया जिसकी वजह से कम शरह सूद के दौर में जारी होने वाली बॉन्डज़ की क़ीमतें गिरने लगे. यहीं से सिलिकॉन वैली बैंक की मुश्किलात शरू हुई.

सिलिकॉन वैली बैंक को कम क़ीमत पर लिक्विड बॉन्ड पोर्टफोलियो बेचना पड़ा. इसके नतीजे में बैंक को 1.8 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ. सरमायाकारों ने बैंक की नाज़ुक माली हालत को भांप लिया, चुनांचे इन्होने शेयर बेचना शरू कर दिया. इस तरह बैंक का हिस्सा 60 फीसद तक टूट गया और बलाआख़िर बैंक बंद हो गया. अपने जमा रक़म को निकालने के लिए बैंक की इमारत में हुजूम लग गया और किसी तरह हालात पर क़ाबू पा लिया गया.

वर्ष 1983 में शरू हुआ ये बैंक स्टार्टअप्स में सरमायाकारी करने वाला एक बड़ा बैंक था. ये फंडिंग का एक बड़ा जरिया था. सिलिकॉन वैली बैंक ने 21 हिन्दुस्तानी स्टार्टअप्स में भी सरमायाकारी की हैं, पिछले 5-7 सालों से ये बैंक सुर्ख़ियों में आया था. अच्छे मुनाफे की वजह से लोग इसमें पैसे जमा कराते थे. लेकिन अब सिलिकॉन वैली बैंक के बंद होने का ख़ौफ़ हिंदुस्तानी बाजार में देखा जा सकता है. खदशा ज़ाहिर किया जा रहा है कि सिलिकॉन वैली बैंक की बंदिश के बाद स्टार्टअप्स कंपनियों को फंड नहीं मिलेगा, फिर इन्हे भी अपना कारोबार समेटना पड़ेगा.

टेकक्रंच नामी मैगज़ीन ने कहा है कि अमेरिका से 8000 किलोमीटर दूर हिन्दुस्तान में स्टार्टअप्स कंपनियों पर इसका असर यक़ीनी है. दर्जनों हिन्दुस्तानी स्टार्टअप्स सिलिकॉन वैली बैंक पर निर्भर करते हैं. कुछ स्टार्टअप्स में सिलिकॉन वैली बैंक इनका वाहिद बैंकिंग पार्टनर था, जिसका पैसा वहीं फंसा हुआ है.

कुछ हिंदुस्तानी कंपनियां वक़्त पर अपनी रक़म सिलिकॉन वैली बैंक से मुन्तक़िल नहीं कर सकीं क्योंकि इनके पास दूसरा अमेरिकी बैंकिंग अकाउंट आसानी से दस्तयाब नहीं था.

ये तमाम मनफ़ी हालात आने वाले संकट की ख़बर दे रहे हैं. भारत में नौकरियां पहले ही कम हो चुकी हैं. हुकूमत रोज़गार नहीं दे रही, नौजवानों में स्टैंड अप और स्टार्ट अप का मन्त्र फूंका जा रहा है कि नौकरी मांगने वाले न बनो, नौकरी फ़राहम करने वाले बनो. लेकिन नौकरियां भी इसी वक़्त दी जा सकती हैं जब लोगों को तनख़ाह देने का इंतज़ाम हो. बैंक अक्सर इसमें मददगार साबित होते हैं. लेकिन हिंदुस्तानी बैंकों की हालत पहले से बदतर हैं. हुकूमत ने बैंकों के इंज़माम और निजी शोबों को फ़रोग़ देने के अमल में हर तरह से अपने हाँथ पीछे खिंच लिए हैं.

अडानी एपिसोड के बाद मार्किट में पहले ही ख़ौफ़ व हरास हैं. स्टॉक मार्किट में लाखों छोटे सरमायाकार अपना सरमाया खो चुके हैं. ऐसे में अमेरिका में ऐसे बैंक का बंद होना जो हिंदुस्तानी कंपनियों का भी सहारा था, एक बुरा वाक़्या है. मुमकिन है कि इस से दुनिया में मआशी कासाद बाज़ारी जैसी सूरतेहाल पैदा न हो, लेकिन हिन्दुस्तान में डगमगाती माशियत के मज़ीद गिरने के इमकानात हैं.

[नोट: उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एमसीएफ न्यूज़ इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]