जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने नफरत और विभाजन की राजनीति को खारिज करने के लिए कर्नाटक के लोगों की सराहना की

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Photo: Jamaat-e-Islami Hind
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नई दिल्ली: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने विधानसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा के बाद कर्नाटक के लोगों को बधाई दी। मीडिया को जारी एक बयान में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा, ” जमाअत-ए-इस्लामी हिंद नफरत और ध्रुवीकरण के पैरोकारों को हराने के लिए कर्नाटक के लोगों की सराहना करती है।

कर्नाटक के लोगों को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने और घृणा फैला कर उनका ध्रुवीकरण करने के हताश प्रयासों के बावजूद कर्नाटक के लोगों ने अपना संयम बनाए रखा। उन्होंने साम्प्रदायिक आधारित चुनाव अभियान से अपने वोट को प्रभावित नहीं होने दिया।

कर्नाटक के लोगों ने देश के लोगों को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि उकसावे के बावजूद किस तरह एकजुट रहें और शांति और सद्भाव बनाए रखें। उन्होंने दिखाया है कि सत्ता में बैठे लोगों की विफलताओं को छिपाने के लिए जानबूझकर बनाए गए भावनात्मक मुद्दों की तुलना में रोजगार, मूल्य वृद्धि, स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण जैसे वास्तविक मुद्दे अधिक महत्वपूर्ण हैं। यह एक स्वागत योग्य संकेत है कि जिन लोगों ने समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिश की और घृणा का सहारा लिया, उनकी चुनावों में व्यापक रूप से हार हुई।”

जमाअत के उपाध्यक्ष ने कहा, “कर्नाटक चुनावी नतीजा सभी धर्मनिरपेक्ष दलों को भी एक संदेश देता है। उन्हें हिजाब प्रतिबंध, हलाल मुद्दा, मुस्लिम आरक्षण और उनके आर्थिक बहिष्कार जैसे मुद्दों पर राजनीतिक नुकसान के डर के बिना एक सैद्धांतिक रुख अपनाना चाहिए।

धर्मनिरपेक्ष दलों और क्षेत्रीय दलों को कर्नाटक के फैसले से सबक सीखना चाहिए और उन नीतियों को अपनाना चाहिए जो जाति और धार्मिक विचारों की परवाह किए बिना न्याय और समानता पर आधारित हों। बहुसंख्यक समुदाय के विरोध के डर से मुसलमानों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व में उनका उचित हिस्सा देने से इनकार करना सैद्धांतिक रूप से गलत है।

कर्नाटक के लोगों ने संदेश दिया है कि भारतीय राजनीति भावनात्मक मुद्दों या विभाजन और ध्रुवीकरण का कारण बनने वाले मुद्दों के बजाय वास्तविक मुद्दों पर आधारित होनी चाहिए। जो पार्टियां नफरत फैलाकर फायदा उठाने में विश्वास रखती हैं, उन्हें अपनी कार्यशैली में सुधार करना चाहिए क्योंकि यह नीति राजनीतिक रूप से टिकाऊ नहीं है। कर्नाटक के नतीजे साबित करते हैं कि उत्पीड़ितों के लिए न्याय की वकालत करना, सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देना और विकास के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना ही चुनाव जीतने का एकमात्र तरीका है।”